जीवन की किसी घटना का कर्ता कोई मनुष्य नहीं है, ईश्वर है। अतः जब तुम किसी काम करनेवाले को गाली देते हो तो उस काम करने वाले को गाली नहीं देते, गाली सीधे ईश्वर को जाती है। एक बार किसी बड़े पण्डित ने कोई बात कही। बात मुझे जँची नहीं। मैंने कह दिया- ‘किस मूर्ख ने ऐसा कहा है ?’ उस पण्डित जी ने मेरे गुरूजी का नाम लेकर कहा- ‘उन्होंने कहा है। ‘
मैं- ‘तब तो ठीक है।’
पण्डित जी – ‘पहले गली दे दी, अब कहते हो – ठीक कहा है।’ इसी प्रकार हम कार्यों को दूसरों का किया मानकर गाली देते हैं। जैसे खीर खिलाने वाला चटनी, नमक, मिर्च भी परसता है कि इन्हें बीच-बीचमें खाने से खीर का स्वाद बढ़ जायेगा, वैसे ही भगवान् बीच-बीच में अपमान, दुःख, अभाव, रोग भेजते हैं। इन्हें हमारे अभिमान को तोड़ने के लिए भेजते हैं।
जन्माष्टमी भगवान् का अवतार-काल है। शरद-पूर्णिमा रास का दिन है। इसी प्रकार रामनवमी, शिवरात्रि आदि भगवत्स्मरण कराने वाले काल हैं। प्रत्येक महीने में एकादशी, द्वादशी, प्रदोष आदि आते हैं। अयोध्या, वृन्दावन, वाराणसी आदि देश भगवत्स्मरण कराने वाले हैं। संत ज्ञानेश्वर, एकनाथ, नामदेव, तुकाराम, नरसी मेहता, सूरदास, तुलसीदास, गुरुनानक, आल्वार, नायनार आदि संतों को भगवान् ने हमारे कल्याण के लिए कृपा करके पृथिवी पर भेजा। भगवान् ने हमें हृदय दिया कि उनसे प्रेम करें। बुद्धि दी कि उनके विषय में सोचें।
आपको एक सूची बनानी चाहिए कि प्रतिदिन आप कितनी देर अपने और अपने परिवार के लिए काम करने में लगाते हैं ? कितना समय समाज तथा दूसरों को देते हैं तथा कितना समय ईश्वर के लिए लगाते हैं ? यदि आठ घण्टे अपने परिवार के लिए लगाते हैं तो दो घण्टे समाज लिए तथा दो घण्टे ईश्वर के लिए भी लगाइये। सारा जीवन स्वार्थ के लिए ही लग जाये, यह कैसा जीवन है ?
(क्रमशः)