समुद्र ने अमृत के द्वारा देवताओं की, लक्ष्मी के द्वारा भगवान् विष्णु की, मर्यादा स्थापन के द्वारा पृथिवी की, कल्पवृक्ष से इन्द्र की, चन्द्रकला से शंकर की सेवा की, उन्हें सन्तुष्ट किया। अपने उदर-गृह में बसाकर यत्नपूर्वक मैनाकादि पर्वतों को संरक्षण दिया। परन्तु जब अगस्त्य मुनि उसको पीने लगे तब किसी ने उसको रोका नहीं, रक्षा नहीं की।
माता को हँसी क्यों आयी ? भाण्डासुर मर चुका था। क्रोध आने का कोई कारण नहीं था। थोड़े की रक्षा के लिए गयी और बड़ी हानि हुई, क्या आश्चर्य है ? पुत्र माता की सम्पत्ति की रक्षा करता है और हमारे घर में ऐसा लाल आया जो अपने हाथों सम्पदा को बिगड़ता है। हँसने का अर्थ यह है कि श्रीकृष्ण डरकर कहीं भाग न जाय।
ऊखल उलटा करके रखा हुआ था। वह अग्नि-नाभि है। सुपर्ण-चयन में यज्ञपुरुष के समान भगवान् उसपर बैठ गये। मर्कटों को बासी मक्खन देने लगे। अतिरिक्त वस्तु अतिरिक्त को देने से अतिरिक्त की शान्ति हो जाती है। दान में भी यथेष्टता थी। इस चोरी के कर्म में नेत्र विशंकित हैं। यशोदा धीरे-धीरे पीछे से आ रही है। पीछे से आने के कारण श्री कृष्ण के पृष्ठ में स्थित अधर्म का दर्शन होता है। श्रीसुदर्शन सूरि एवं श्री वीरराघवाचार्य ने यहाँ ‘मर्क’ शब्द का अर्थ मर्कट, मार्जार एवं ब्रज के सखा, ऐसा लिखा है। किसी-किसी ने मर्क अर्थात् माखन के लिए आये हुए सखा।
(क्रमशः)