विश्वास करना ही पड़ता है- अपनी बुद्धि पर करो, चाहे परायी पर। विश्वास करने के लिए आत्मबल की आवश्यकता है। दुर्बल हृदय किसी पर विश्वास नहीं कर सकता। चरित्रभ्रष्ट पुरुष जितना जल्दी प्रभावित होता है, उतना ही जल्दी अविश्वास भी करता है। क्या तुम किसी पर विश्वास करते हो कि ये गला भी काट दें तो हमारा हित ही करते हैं ? परमात्मा पर ऐसा ही विश्वास करो। तुम निर्भय रहो। क्योंकि यदि तुम परमात्मा के प्रति हृदय से सच्चे रहे तो तुम्हारी हानि कभी हो ही नहीं सकती। जिसे संसारी लोग हानि समझते हैं, वह तो साधक के लिए परम लाभ है। भगवान् तुम्हारे चारों ओर और हृदय में रहकर तुम्हारी रक्षा कर रहे हैं।
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संसार में सुख-शांति से रहने के लिए ‘भगवान् का आशीर्वाद मेरे साथ है, इस विश्वास से बढ़कर कोई उपाय है ही नहीं।
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जब अपना मन ही ईश्वर है,
जब अपना मन ही गुरुवर है,
तब बार-बार क्यों पूछ रहे,
विश्वास बिना सब पत्थर है
जो होता है वह ईश्वर का
करुणा से पूर्ण विधान भला,
यदि अपने मन को खलता है,
तो क्या पथ पर वह ठीक चला ?