Anand Prabodh
17 Oct 2016 Leave a comment
in 2015

गोपी प्रेम
प्रेम अपने सुख केलिए नहीं होता ,प्रेम तो अपने प्यारे के सुख के लिए होता है। काम और प्रेम में यही फर्क है कि एक ओर प्रेमी है और दूसरी ओर प्रियतम है और बीच में सुख रखा है। प्रेमी सुख को अपने प्रियतम की ओर ढकेलता है ,अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपने सुख के लिए प्रेम करते हैं ,वे तो कामी हैं ,प्रेमी हैं ही नहीं। इसलिए गोपियों ने जन्म भर दुःख सहा, विरह की वेदना सही ,लेकिन वे श्रीकृष्ण के पास मथुरा नहीं गयीं। प्रेम का बड़प्पन इसी में है कि वह अपने प्रियतम को सुखी रखना चाहता है “तत्सुखे सुखित्वम्” । गोपी जब श्रृंगार करती है, अपने बाल सँवारती है ,उनमें फूल लगाती है ,शरीर को चिकनाती है , आभूषण पहनती है , वस्त्र पहनती है , किसलिए ? इसलिए कि श्रीकृष्ण को सुख मिले। भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं इस बात क़ो कहा है ,
निजाङ्गमपि या गोप्यो ममेति समुपास्ते।
ताभ्यः परं न मे किञ्चिन्निगूढ़ -प्रेम भाजनम्।।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि गोपियाँ अपने शरीर को मेरा शरीर मान कर ही उसका श्रृंगार करती हैं। इसीसे गोपियों से बढ़कर मेरे प्रेम का पात्र और कोई नहीं है।
नारायण ,प्रेम में तो दूसरापन नहीं होता। अतः प्रेम में दूरी बाधा नहीं डालती, निकटता भी बाधा नहीं डालती ,देरी बाधा नहीं डालती और तत्काल -तत्क्षण भी बाधा नहीं डालता।
