मन पर विजय प्राप्त करने के लिये चार युक्ति ध्यान में रखनी चाहिये –
अध्यात्मविद्याधिगमः साधु सङ्गतिरेव च।
वासनासंपरित्यागः प्राणस्पन्द निरोधनम्।
एतास्ता युक्त्या पुष्टः सन्ति चित्तजयेखिल।
- अध्यात्मविद्या – माने पोथी में लिखी हुई नहीं। अध्यात्मविद्या माने ऑंख का देखना और हमारे मनका सङ्कल्प। हाथ का उठना और हमारे मनकी स्थिति। पॉँव का चलना और हमारा मन। और ,मन और हमारी आत्मा। ये किस प्रकार सम्बद्ध होकर काम करते हैं !जैसे मोटर चलाने वाले ड्राइवर को मोटर की एक-एक मशीनरी का ज्ञान होवे ,तब तो वह बिगड़ने पर उसको चालू कर लेगा और मशीनरी का ज्ञान न होवे तो बिगड़ने पर वह चालू नहीं कर सकता। इसी प्रकार यह हमारे शरीर का यंत्र किस प्रकार से चालू होता है -यह हमको आँखसे देखने की ,कान से सुनने की, नाक से सूँघने की जो प्रक्रिया है ,मन के साथ जो इनका सम्बन्ध है ,वह ज्ञात होना चाहिये। तब हम मनको एकाग्र कर सकेंगे।
- साधुसंगतिरेव च – जिन्होंने अपना मन लक्ष्य में लगाया हो, उनकी संगति होनी चाहिए।
- वासनासम्परित्यागः – जो भिन्न-भिन्न प्रकार की वासनायें हैं, उनका त्याग होना चाहिए।
- प्राण स्पन्द निरोधनं – प्राण को रोकने का सामर्थ्य होना चाहिए।
ये चार युक्ति मन को निरुद्ध करने के लिए प्रधान हैं। यदि युक्ति नहीं करोगे भाई, ‘बिना युक्तिमनिन्दितं’ बिना प्रशस्त युक्ति के अनुष्ठान के मन कभी एकाग्र नहीं हो सकता।