‘भगवद्-दर्शन’

     नारायण, भगवान् का दर्शन होता है। हमको तो आश्चर्य होता है जब पढ़े-लिखे लोग भी इसको आभास बोलते हैं। आप तुलसीदास के दर्शन को आभास कहते हैं ! मीरा के दर्शन को आभास कहते हैं ! बड़ी हिमाकत है, दुस्साहस है। भगवान् का दर्शन इन्हीं आँखों से होता है। जैसे आप सब लोगों का, जैसे हम सबका दर्शन आँखों से होता है, ऐसे ही भगवान् का दर्शन होता है। और, जितनी ममता हमें पिता से, पति से, पुत्र से, माता से होती है; उतना ही सम्बन्ध, बल्कि उससे दृढ़ सम्बन्ध भगवान् के साथ होता है और जितना दर्शन इस संसार का हो रहा है, उससे भी ठोस दर्शन भगवान् का होता है। भगवान् भक्तों के साथ हँसते हैं,बोलते हैं, खाते हैं, खिलाते हैं। आभास-आभास क्या कहते हो आप ? दुनिया आभास है। पत्नी आभास है। आपके साथ पैदा नहीं हुई है। पीछे जोड़ी गयी है। पति आभास है। वह आपके साथ पैदा नहीं हुआ, बीच में जोड़ा गया है।  वह सच्चा कैसे हो गया ? माता आभास है, सिर्फ बताई हुई है। पिता आभास है, सिर्फ बताया हुआ है। भगवान् जो हमारे हृदयेश्वर हैं, हमारे हृदय के परमधन हैं, प्रेष्ठ हैं, वे आभास कैसे ? अपना आत्मा आभास है ? आभास तो संसार के सगे-संबन्धी हैं। इन आभासों में कैसे फँस गये ? भगवान् के दर्शन को आभास कहते हो और इन माने हुए, बताये हुए झूठे सम्बन्धों को सच मानते हो ?   

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श्री कृष्ण लीला में आदर्श

5jun2017

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ईश्वरकी सम्पत्ति पानेकी युक्ति 

                                          देखो ,एक बात पर ध्यान दो -दुनिया में अगर आपको बापकी सम्पत्ति लेनी हो तो इन्तज़ार कर सकते हो कि बाप जब मरेगा ,तब उसकी चीज़ हमको मिल जायेगी। सो उसमें भी बाधा है। अगर वह किसी के नाम से ‘विल’ बना जाये तो वह भी जल्दी नहीं मिलेगी। अब बोले कि ईश्वर की सम्पत्ति हमको कैसे मिले? इन्तज़ार करें कि जब ईश्वर नहीं रहेगा ,तब ईश्वर की सम्पत्ति हमको मिलेगी? नारायण ,ऐसा नहीं है। वह कभी नहीं रहेगा -ऐसा तो होगा ही नहीं। अच्छा,जहाँ ईश्वर का राज्य नहीं होगा,वहाँ हम अपना राज्य बना लेंगे ?चलो सात समुद्र पार, जहाँ ईश्वर का राज्य नहीं है, वहाँ हम अपना राज्य बनावें। तो वहभी ईश्वर के राज्य में है। अच्छा,उस समय का इन्तज़ार करें,जब ईश्वर नहीं रहेगा और उस समय हमारा राज्य रहेगा ?अच्छा भाई,यदि आप यह ढूँढो कि जो चीज़ ईश्वर की न हो ,सो हम अपनी बना लेंगे !
                                   तो इस तरह से न तो तुम्हें राज्य कारण के लिये कोई जगह मिलेगी ,न राज्य करने के लिये कोई समय मिलेगा और न राज्य करने के लिये कोई वस्तु मिलेगी। ज़िन्दगी -भर ठनठनपाल रहोगे। अनादिकालसे लेकर अनन्तकाल तक ठनठनपाल ही रह जाओगे। अगर ईश्वरसे अलग होकर कोई राज्य बनाना चाहोगे,राजत्व -काल बनाना चाहोगे,दुनिया की किसी चीज़ को अपनी बनाना चाहोगे,तो बना नही सकते। छिन जायेगी। और ,अगर ईश्वरके तनसे अपना तन मिला दो,ईश्वरके विराट्-रूप में अपनेको मिल जाने दो और ईश्वरके मनसे अपना मन मिला दो ,उसके हिरण्यगर्भमें अपने तैजस् को मिला दो और ईश्वरके रूपमें अपने कारण को मिला दो तथा ईश्वरकी आत्मा और अपनी आत्मा एक कर दो। देखो,ईश्वरकी सारी सम्पत्ति तुम्हारी है कि नहीं ?
                                तो नारायण ,ईश्वरकी सम्पत्ति पाने की यही युक्ति है कि हम अपनेको ईश्वरसे एक कर दें। ईश्वरकी वस्तु पाने की यह युक्ति नहीं है हम उससे अलग अपने को रखें !जो अपनेको अलग रखेगा वह ईश्वरकी सम्पत्ति से ,ऐश्वर्य से अलग हो जायेगा। वह अमृतकी  जगह ज़हर पावेगा। वह सुखकी जगह दुःख पावेगा। वह ज्ञान की जगह अज्ञान पावेगा।वह सत्ताकी जगह असत्ता पावेगा। और,ईश्वरसे अपनेको एक करके देखो तो सारी सृष्टिसे तुम एक हो। अरे ,ऐसा मज़ा है!
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प्रवृत्तिनियामको वर्णधर्मः निवृत्तिपोषकश्चापरः

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