तुममें शान्ति का खजाना भरा है। तुममें आनन्द का सागर लहरा रहा है। तुम्हारे हृदय में समाधि की शान्ति भरी है। तुम्हारे हृदय में प्रेम का स्रोत बहता है। तुम तो सौंदर्य और माधुर्य के निधि हो। उसको बाहर निकालो और अपनी आँख द्वारा, स्पर्श द्वारा, व्यवहार द्वारा सबमें बाँटो। नहीं तो वह बेकार जायेगा।
भक्त की हरेक प्रक्रिया प्रभु के अनन्त माधुर्य, सौंदर्य, ऐश्वर्य, रस, सुकुमारता और आनन्दस्वरुप को बाहर लाकर सम्पूर्ण जगत् को बाँटने के लिए ही है।
भक्ति तो भीतर में सोये हुए परमात्मा को जगाकर कण-कण में नचाने के लिए और क्षण-क्षण में हँसाने के लिए है। जीवन में भक्ति भरने के बाद वैकुण्ठ में जाने के लिए नहीं किन्तु इसी जीवन में वैकुण्ठ का माधुर्य पाने के लिए है।
आपका कोई-न-कोई प्रेमी होगा ही। उसको आपमें कितना प्यार, सुख और आनन्द काअनुभव होता होगा ! उसकी प्यार भरी आँखों से आप अपने को ही देखिये। और, तब आप अपने आनन्द को जगत् में बिखेरिये।