सुख भी अपने हृदय में है।
दुःख भी अपने हृदय में है।
जब आपका हृदय कथामृत के भगवद्-रस में सराबोर रहता है तब बताइये, आपको दुकान, दुश्मन, रोग, कुछ भी याद आता है ? उन सब प्रपंचों का विस्मरण तब हो ही गया न ?
आपको राग-द्वेष और मोह के फंदे से मुक्त करने के लिए ही और आपको अपने हृदय में स्थिर रहने का प्रयोग कथा द्वारा होता है।
आपका मन आपकी प्रकृति में स्थिर होगा तो राग-द्वेष आपको परेशान नहीं करेंगे ! फिर तो आपके हृदय में विराजमान प्रभु के प्रति प्रेम और सेवा का निर्झर बहने लगेगा। और, तब आपको विश्वास होगा कि सम्पूर्ण सुखों के स्रष्टा आप ही हैं, और सम्पूर्ण सुखों के अक्षयभण्डार आप ही हैं।