मैं छोटा था तब एक महापुरुष ने मुझे कहा था : ‘आनन्द का आस्वादन करना हो तो कमरे में बन्द होकर प्रभुप्रेम में मस्त होकर नाचो।’
मैंने पूछा : ‘इससे क्या लाभ ?’
तब उन्होंने बताया : ‘इससे दूसरे किसीकी भी सहायता के बिना तुम्हें अपने सुख के विषय में विचार करने की प्रक्रिया मिल जायेगी।’
प्रेम की चाल का नाम है, नृत्य।
प्रेम की बोली का नाम है, संगीत। प्रेम माने तृप्ति। प्रेम माने रसानुभूति।
भौतिक रसानुभूति प्राप्त करने के लिए कोई मुँह में रसगुल्ले डालता है तो कोई गांठिया खाता है। और उसके लिए तो पैसा, वस्तु और व्यक्ति चाहिए।
बिना वस्तु, व्यक्ति और पैसे की अपेक्षा के जीवन का अनन्त आनन्द प्राप्त करना हो तो प्रभु प्रेम में मस्त बन जाओ। फिर हृदय की गति के ताल पर नाचो।