पृथिवी देखकर आपको स्मरण आता है कि इसे वराह भगवान् ने स्थापित किया है ? इसी धरती पर श्री रघुनाथ ‘धूसर धूरि भरे तन आये’ और यही पृथिवी है जिसपर गोपाल घुटनों चलता था। समुद्र देखकर आपको शेषशायी का स्मरण आता है ? यह भगवान् की ससुराल है। भगवान् इसमें शेषशय्या पर सोते हैं। सूर्य-मण्डल में भगवान् हैं। चन्द्र-मण्डल में भगवान् हैं। वायु विराट् पुरुष का श्वास है। शरीर में वायु लगने पर कभी स्मरण आता है कि हमारे इतने समीप भगवान् का मुख है ? ये बातें मन में आने लगे, तब समझो कि भक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। सृष्टि के कर्ता कारीगर का हाथ सर्वत्र दीखना चाहिए। उसे देखने, उससे मिलने की उत्कण्ठा होनी चाहिए।
हे देव हे दयित हे भुवनैकबन्धो।
हे कृष्ण हे चपल हे करुणैकसिन्धो।
हे नाथ हे रमण हे नयनाभिराम।
हा हा कदानुभवितासि पदं दृशोर्मे।।
वह रसमयी, मधुमयी, लास्यमयी श्याममूर्ति हमारे नेत्रों के सम्मुख कब आयेगी ? जीवन में वह क्षण कब आयेगा ? हे कृष्ण ! हे चपल ! हे करुणासिन्धु ! हे स्वामी ! हे प्रियतम ! हे त्रिभुवनबन्धु ! हे परमसुन्दर ! कब तुम मेरे नेत्रों के सम्मुख आओगे !
यह उत्कण्ठा-प्यास जगे प्राणों में। आप विश्वास कीजिये कि ईश्वर है। सच्चा है और ईश्वर का दर्शन इन्ही नेत्रों से होता है। जितना सत्य यह जगत् है, उससे अधिक सत्य परमात्मा है।
डाक्टर कहते हैं- ‘हम हृदय बदल सकते हैं।’ जब आप हृदय बदलते हो तो क्या उस व्यक्ति की स्मृतियाँ और भावनाएँ बदल जाती हैं ? ऐसा तो नहीं है। यह तो एक मांस-खण्ड है, जिसे आप बदलते हो। हृदय हम कहते हैं भावनाओं के आधार को। वह बदला नहीं जाता।
(क्रमशः )